नई दिल्ली: दिल्ली पुलिस ने 2020 उत्तर-पूर्व दिल्ली दंगों की कथित “बड़ी साज़िश” से जुड़े यूएपीए मामले में उमर खालिद, शरजील इमाम और अन्य की जमानत याचिका का विरोध किया है। गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट में दायर हलफनामे में पुलिस ने कहा कि रिकॉर्ड पर मौजूद “सामग्री और चैट्स” में डोनाल्ड ट्रंप से जुड़े संदर्भ यह दर्शाते हैं कि “साज़िश पहले से तय थी और इसे पूरे भारत में दोहराने और अमल में लाने की योजना थी।”
उमर खालिद के वकील ने मंगलवार को दिल्ली की एक अदालत में तर्क दिया कि 2020 दंगों की साज़िश मामले में खालिद के खिलाफ कोई आपराधिक आधार नहीं है। उन्होंने कहा कि किसी व्हाट्सऐप ग्रुप का सदस्य होना अपराध नहीं माना जा सकता, खासकर जब खालिद ने ग्रुप में कोई संदेश भी नहीं भेजा।
हलफनामे में आगे कहा गया कि “साज़िश” का मकसद “अंतरराष्ट्रीय मीडिया” का ध्यान आकर्षित करना और नागरिकता संशोधन अधिनियम (CAA) को भारत में मुस्लिम समुदाय के खिलाफ “पोग्रोम की कार्रवाई” के रूप में पेश करना था।
हलफनामे के मुताबिक CAA के मुद्दे को “उत्तेजक उत्प्रेरक” के तौर पर “शांतिपूर्ण विरोध” की आड़ में चुना गया था। पुलिस ने कहा कि “गहरी, पूर्व-नियोजित साज़िश” के कारण 53 लोगों की मौत हुई और सार्वजनिक संपत्ति को बड़े पैमाने पर नुकसान पहुँचा।
खालिद के वकील ने हालांकि पुलिस के दावों में विरोधाभासों की ओर इशारा किया, यह बताते हुए कि ट्रंप की यात्रा की खबर 13 फरवरी को सामने आई थी, जबकि एफआईआर में कहा गया है कि कथित साज़िशकर्ता 8 फरवरी तक ही तारीख जान चुके थे। वकील ने कॉल डिटेल रिकॉर्ड्स का हवाला देते हुए यह भी कहा कि खालिद 8 दिसंबर 2019 को जंगपुरा में हुई उस बैठक में मौजूद नहीं थे, जहाँ कथित साज़िश रची गई थी। उन्होंने एक संरक्षित गवाह के बयान का भी उल्लेख किया, जिसमें इस साज़िश से जुड़े एक अलग गुप्त बैठक का दावा किया गया है।
यह हलफनामा तब आया जब सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली पुलिस को शरजील इमाम, उमर खालिद, गुलफिशा फातिमा, मीरान हैदर और शिफा उर रहमान की जमानत याचिकाओं पर जवाब दाखिल न करने को लेकर फटकार लगाई थी। ये याचिकाएँ दिल्ली हाई कोर्ट द्वारा यूएपीए मामले में जमानत से इनकार करने के आदेश को चुनौती देती हैं, जो 2020 उत्तर-पूर्व दिल्ली दंगों की कथित बड़ी साज़िश से संबंधित है।
