कई यात्रियों के लिए एयरपोर्ट लाउंज में कदम रखना एक लग्ज़री अनुभव जैसा लगता है — मानो सब कुछ “फ्री” हो। मुफ़्त खाना, वाई-फाई, रीक्लाइनर सीटें, और कभी-कभी तो स्पा सर्विस भी। लेकिन सच्चाई यह है कि इन सबकी कीमत कोई और चुका रहा होता है।
कौन देता है खर्च?
NDTV की रिपोर्ट के अनुसार, पूर्व बैंकर और डेटा विश्लेषक सुरज कुमार तलरेजा ने बताया कि इन लाउंज विज़िट्स का खर्च यात्रियों के बजाय बैंक और कार्ड नेटवर्क्स उठाते हैं। जब भी कोई कार्डहोल्डर अपने कार्ड से लाउंज में प्रवेश करता है, बैंक या कार्ड नेटवर्क उस ऑपरेटर को भुगतान करता है। यह सेवा कार्ड के “बंडल्ड बेनिफिट्स” के रूप में दी जाती है।
आराम के पीछे छिपे ख़र्चे
इकोनॉमिक टाइम्स के अनुसार, भारत में लाउंज ऑपरेटर बैंकों से प्रति विज़िट ₹600 से ₹1,200 तक चार्ज करते हैं। वहीं अंतरराष्ट्रीय लाउंज (जैसे Priority Pass या LoungeKey नेटवर्क) की एंट्री फीस लगभग US$25–35 (₹2,000–₹3,000) तक होती है।
इस भुगतान में खाने-पीने, वाई-फाई, आराम करने की जगह, और कभी-कभी स्लीप पॉड्स या स्पा सेवाएं भी शामिल होती हैं।
बैंक क्यों देते हैं ये सुविधा?
यह किसी दान का हिस्सा नहीं है — बल्कि एक रणनीति है। बैंक और कार्ड कंपनियां इस सुविधा को ग्राहक आकर्षण और बनाए रखने का साधन मानती हैं। लंबी उड़ानों या लेओवर के दौरान मिलने वाला आराम यात्रियों में ब्रांड के प्रति भरोसा और लगाव बढ़ाता है। अक्सर इन खर्चों को कार्ड की वार्षिक फीस या अन्य शुल्कों में शामिल कर लिया जाता है।
तीनों पक्षों को फ़ायदा
यह मॉडल यात्रियों, लाउंज ऑपरेटरों और बैंकों — तीनों के लिए फ़ायदेमंद है। यात्रियों को मिलता है “फ्री” आराम, लाउंज को मिलती है स्थिर आय, और बैंकों को मिलता है प्रतिस्पर्धी बढ़त का लाभ।
असल में, एयरपोर्ट पर “फ्री” सैंडविच या रीक्लाइनर की कीमत वो आर्थिक सिस्टम चुका रहा होता है, जिसका हिस्सा आप अपने कार्ड के ज़रिए बनते हैं।
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प्रथम प्रकाशन: 28 अगस्त, 2025 | सुबह 9:44 बजे (IST)
